हिंदू धर्म में वेदों के अनुसार चार युग माने गए हैं। पहला सतयुग, दूसरा त्रेतायुग, तीसरा द्वापरयुग और चौथा कलयुग।
चारों युगों में कलयुग को सबसे छोटा माना गया है। कलयुग को सृष्टि का अंत माना गया है क्योंकि इस युग में सबसे ज्यादा अधर्म, अन्याय, हिंसा और पाप होंगे।
लेकिन फिर भी चारों युगों में कलयुग को ही सबसे सर्वश्रेष्ठ युग क्यों माना गया। इसके पीछे एक रोचक कथा है आइए जानते हैं।
विष्णु पुराण के अनुसार ,एक बार ऋषि मुनि आपस में चर्चा कर रहे थे कि चारों युगों में सर्वश्रेष्ठ युग कौन सा है। तब महर्षि व्यास ने ऋषि मुनियों से कहा-
चारों युगों में कलयुग ही सर्वश्रेष्ठ युग है, क्योंकि सतयुग में जो पुण्य 10 वर्षों की पूजा, जप, तप और व्रत से प्राप्त होता है, वही कलयुग में मात्र एक साल में प्राप्त हो जाता है।
त्रेता युग में जो पुण्य 1 साल के जप तप से और द्वापर युग में वही पुण्य 1 महीने के जप तप से मिलेगा, कलयुग में वही पुण्य मात्र 1 दिन के जप और तप से ही मिल जाता है।
इसलिए महर्षि व्यास ने कहा चारों युगों में कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ युग है, जिसमें मात्र एक दिन की भक्ति से ही 10 सालों का पुण्य प्राप्त हो जाता है।