स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी का जन्म 18 फरवरी, 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर गांव में हुआ था। वह माता काली के बड़े भक्त थे।
रामकृष्ण परमहंस को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। आइयें जानते हैं रामकृष्ण परमहंस के उपदेश और उनसे प्रेरणा लेते हैं -
जब तक हमारे मन में इच्छाएं रहेगी, तब तक हमें न तो शांति मिल सकती है और ना ही ईश्वर की भक्ति जाग सकती है।
बारिश का पानी ऊंचाई पर नहीं ठहरता और ढलान पर बहकर नीचे जाता है। ऐसे ही ज्ञान भी घमंड में ऊंचे उठे सिर में नहीं ठहरता।”
जो व्यक्ति दूसरों की बिना किसी भी स्वार्थपूर्ण उद्देश्य से मदद करता है, वह असल में खुद के लिए अच्छे का निर्माण कर रहा होता है।
जिस प्रकार हवा हमेशा बहती रहती है, उसी तरह ईश्वर की कृपा भी हमेशा बरसती रहती है। बस, हमें अपनी नाव की पाल उठानी है और उसकी दिशा में जाना है।
मन की परिभाषा को बताते हुए परमहंस जी ने बताया है कि मन वो होता है जो किसी को बुद्धिमान, किसी को अज्ञानी और किसी को मुक्ति देता है।
आप बिना गोता लगाये मणि प्राप्त नहीं कर सकते। भक्ति में डुबकी लगाकर और गहराई में जाकर ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
जिस तरह गंदे शीशे पर सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता, उसकी तरह गंदे मन-विचार वाले व्यक्ति पर ईश्वर के आशीर्वाद का प्रकाश नहीं पड़ता।