भगवान शिव ने वासुकी नाग को अपने गले में धारण किया है। शंकर भगवान के गले में नाग तीन बार लिपटा हुआ है। इस प्रकार, यह भूत, वर्तमान और भविष्य का सूचक माना जाता है।
शिव के हाथों में हमेशा त्रिशूल रहता है जिसमें सात्विक, राजसी और तामसी तीनों गुण समाहित हैं। इस तरह, त्रिशूल को इच्छा, ज्ञान और पूर्णता का प्रतीक माना जाता है।
शिवजी की जटाओं से ही मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर आगमन हुआ था। इस प्रकार, शिव द्वारा जटा में गंगा को धारण करना अध्यात्म और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई है, जिसे शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है।
शिव के हाथों में डमरू का होना सृष्टि के आरंभ और ब्रह्म नाद का सूचक माना जाता है। हालांकि, डमरू को संसार का पहला वाद्य यंत्र भी कहा जाता है।
बाघ को शक्ति, ऊर्जा और सत्ता का प्रतीक माना जाता है। शिवजी वस्त्र के रूप में बाघ की खाल धारण किए हुए हैं, जो कि निडरता और दृढ़ता को दर्शाता है।
शिवजी के वाहन नंदी यानी बैल हैं, जिनके चारों पैर चार पुरुषार्थों जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को इंगित करते हैं।
शिव भगवान अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। इसका मतलब है कि संसार नश्वर है और हर वस्तु को एक दिन खाक हो जाना है। भस्म को शिव के विध्वंस का प्रतीक माना जाता है।