वास्तु शास्त्र में आठ दिशाएं हैं- उत्तर, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम और वायव्य।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, उत्तर दिशा धन, समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। इस दिशा के अधिपति कुबेर हैं
दक्षिण दिशा का स्वामी यम है, इसलिए इस दिशा में कोई भी दरवाजा या खिड़की नहीं होना चाहिए।
घर को वास्तु दोष से मुक्त होने के लिए घर का पूर्वी भाग बहुत बड़ा और हवादार होना चाहिए।
पश्चिम दिशा वास्तु दिशाओं की सूची में एक प्रमुख स्थान रखती है। पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार नहीं होना चाहिए।
ईशान कोण एक शानदार दिशा है। इसके स्वामी भगवान शिव और अधिष्ठाता ग्रह बृहस्पति है। इस दिशा में शौचालय, भंडार कक्ष और शयनकक्ष बनाना अशुभ माना जाता है।
उत्तर-पश्चिम दिशा के स्वामी वायुदेव और शासक ग्रह चंद्रमा है। यह दिशा मानसिक शांति को भी प्रभावित करती है।
दक्षिण-पूर्व अग्निदेव और शुक्र ग्रह इस दिशा पर शासन करते हैं। हमेशा ध्यान रखें कि दक्षिण-पश्चिम दिशा में ही चिमनी, आग से जुड़ी हर चीज होनी चाहिए।
दक्षिण-पश्चिम दिशा का स्वामी एक राक्षस है और यह राहु छाया ग्रह द्वारा शासित है। अगर इस दिशा में सही तरीके से घर बनाया जाए, तो आपको अच्छी किस्मत मिलती है।