Holashtak 2025 me kya karen kya na karen: यदि आप गृह प्रवेश, कुआं पूजन, नई खरीददारी, शादी या अन्य कोई शुभ कार्य करना चाहते हैं तो सावधान हो जाएं। शुक्रवार (7 मार्च 2025) से ग्रहों का स्वभाव बदल गया है। अब सभी ग्रह क्रूर स्वभाव दिखाएंगे। जिसमें कोई भी कार्य करना शुभ नहीं होगा। दरअसल, शुक्रवार से होलाष्टक शुरू हो गए हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक में आठ दिन तक सभी ग्रह क्रूर दृष्टि रखते हैं। ऐसे में इस दौरान किया गया शुभ कार्य फलित नहीं होता।
क्या है होलाष्टक ? (Holashtak Kya hai)
होलाष्टक में होली और अष्टक दो शब्द मिले हुए हैं। इसका अर्थ होली के आठ दिन होते हैं। इन आठ दिनों की शुरुआत फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होती है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन के बाद ये आठ दिन पूरे मान लिए जाते हैं। मान्यता है कि इन आठ दिनों में ग्रह उग्र रहते हैं।
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इस बार होलाष्टक कब से कब तक? (Holashtak 2025 Kab se kab tk hai)
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी सात मार्च को है। लिहाजा शुक्रवार से होलाष्टक की शुरुआत हो गई। इसी तरह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 13 मार्च को है। ऐसे में उस दिन होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक खत्म मान लिए जाएंगे।
यूं क्रूर होते हैं ग्रह (Holashtak me kya hota hai)
होलाष्टक के आठ दिनों में हर दिन अलग- अलग ग्रहों के उग्र होने की बात ज्योतिष शास्त्र में आती है। शास्त्रीय विधान के अनुसार होलाष्टक में पहले दिन अष्टमी तिथि को चंद्रमा ग्रह उग्रता दिखाता है। इसके बाद नवमी तिथि को सूर्य देव, दशमी तिथि को शनि, एकादशी तिथि को शुक्र देव, द्वादशी यानी बारस तिथि के दिन देवगुरु बृहस्पति, तेरस तिथि को बुध, चतुर्दशी तिथि को मंगल और होलाष्टक की अंतिम तिथि पूर्णिमा के दिन राहु का स्वभाव क्रूर रहता है। ऐसे में इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए होलाष्टक के आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाने की मान्यता बरसों से चली आ रही है।
होलाष्टक में क्या करें, क्या नहीं ? (Holashtak 2025 Me Kya Na Kare)
होलाष्टक के दौरान विवाह, मुंडन, कुआं पूजन, मुंडन तथा नये वाहन, दुकान, जमीन, मकान व सोने— चांदी आदि की खरीद नहीं करनी चाहिए। शास्त्रों में इन आठ दिनों में ग्रहों की शांति के लिए पूजा-पाठ का भी विधान बताया गया है। हर दिन अलग-अलग ग्रहों की शांति के लिए पूजन व हवन आदि क्रियाएं शास्त्रों में बताई गई है। इसके अलावा इन दिनों में भगवान विष्णु, नृसिंह और हनुमानजी की पूजा भी ग्रहों के कुप्रभाव से बचाती है। कई जगहों पर महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का भी जिक्र है।
होलाष्टक क्यों होते हैं अशुभ? (Holashtak Me kya karna chahiye)
शिव पुराण की कथा के अनुसार तारकासुर राक्षस का वध भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र से ही हो सकता था। लेकिन, देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव समाधि में थे। ऐसे में उनकी समाधि भंग करने के लिए देवताओं ने कामदेव को भेजा। कामदेव ने शिवजी की तपस्या भंग करने का प्रयास किया तो क्रोधित होकर शिवजी ने उन्हे तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया। मान्यता है कि कामदेव फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को भस्म हुआ। इसके बाद कामदेव की पत्नी रति व सभी देवताओं ने भगवान शिव से क्षमा मांगी तो उन्हे मनाने में आठ दिन लग गए। जिसके बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कामदेव को जिंदा होने का आशीर्वाद किया। ऐसे में शिवजी को मनाने के ये आठ दिन होलाष्टक कहलाए, जिसमें देवता भी कठिन परिस्थिति में रहे।