Lohargal: राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में स्थित लोहार्गल पर्यटन के लिए फेमस (Lohargal Wonder Places) हैं। यहां पर एक नहीं कई ऐसे स्थान हैं जिनको देखकर आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं।
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में स्थित लोहार्गल, झुंझुनू जिले से 70 किमी दूर और आड़ावल पर्वत की घाटी में बसा एक पवित्र तीर्थस्थल है। इसे नवलगढ़ तहसील में स्थित ‘लोहार्गल जी’ के नाम से जाना जाता है।
लोहार्गल नाम क्यों पड़ा
इस स्थान का नाम ‘लोहार्गल’ इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ के सूर्यकुंड के जल में लोहा भी गल जाता है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है।
पांडवों की प्रायश्चित स्थली
महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव अपने स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए विभिन्न तीर्थों का भ्रमण कर रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर जब वे लोहार्गल पहुंचे और सूर्यकुंड में स्नान किया, तो उनके सभी हथियार गल गए। इस घटना ने पांडवों को इस स्थान की महिमा का आभास कराया और उन्होंने इसे तीर्थराज की उपाधि दी।
भगवान परशुराम की तपस्थली
लोहार्गल का संबंध भगवान परशुराम से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान परशुराम ने अपने क्रोध के कारण किए गए क्षत्रियों के संहार के पाप से मुक्ति पाने के लिए यज्ञ किया था। यहाँ की विशाल बावड़ी, जिसका निर्माण महात्मा चेतनदास जी ने करवाया था, भी दर्शनीय है। इसके साथ ही यहाँ एक प्राचीन सूर्य मंदिर और मालकेतु जी का मंदिर भी स्थित है।
सूर्यकुंड और सूर्य मंदिर की कथा
लोहार्गल में स्थित सूर्य मंदिर और सूर्यकुंड के पीछे भी एक अनोखी कथा जुड़ी हुई है। काशी के राजा सूर्यभान की अपंग पुत्री के पूर्व जन्म की कथा से यह जुड़ी है। विद्वानों की सलाह पर राजा ने अपनी पुत्री के ठीक होने के लिए लोहार्गल के सूर्यकुंड का जल प्रयोग किया। इस चमत्कार से प्रसन्न होकर राजा ने यहाँ सूर्य मंदिर और सूर्यकुंड का निर्माण करवाया। माना जाता है कि यहाँ का पानी भगवान विष्णु के चमत्कार से पहाड़ों से निकलता है और सूर्यकुंड में आता है।
धार्मिक आस्था और परंपराएं
यह स्थान धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भक्तों का यहाँ वर्ष भर आना-जाना लगा रहता है। यहाँ पर विभिन्न धार्मिक अवसरों पर मेले लगते हैं, जिनमें कृष्ण जन्माष्टमी से अमावस्या तक का मेला विशेष रूप से प्रसिद्ध है। श्रावण मास में यहाँ के सूर्यकुंड से जल भरकर भक्तजन कांवड़ उठाते हैं और माघ मास की सप्तमी को सूर्यसप्तमी महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
आसपास के प्रमुख तीर्थ
लोहार्गल के निकट सकराय गाँव में शाकम्भरी देवी का मंदिर स्थित है, जिसे शंकरा देवी के नाम से भी जाना जाता है। भारत में शाकम्भरी देवी का सबसे प्राचीन शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में है, लेकिन सकराय में स्थित यह मंदिर भी भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।
लोहार्गल एक ऐसा तीर्थस्थल है, जो धार्मिक आस्था, प्राचीन मान्यताओं और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम प्रस्तुत करता है। यहाँ की धार्मिक परंपराएँ और चमत्कारी घटनाएँ इसे एक अद्वितीय स्थल बनाती हैं, जहाँ हर भक्त को एक बार अवश्य आना चाहिए।