Bhaum Pradosh vrat 2024: धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब त्रयोदशी तिथि मंगलवार को पड़ती है, तब इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर होता है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक और आर्थिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है, और सभी दोषों का नाश होता है।
अक्टूबर में भौम प्रदोष व्रत की तिथि और मुहूर्त
अक्टूबर 2024 में भौम प्रदोष व्रत 15 अक्टूबर को पड़ रहा है। यह अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि होगी। व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 51 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भक्तों को शिव पूजन के लिए 2 घंटे 30 मिनट का समय मिलेगा।
त्रयोदशी तिथि शुरू: 15 अक्टूबर 2024, शाम 06:12 बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 16 अक्टूबर 2024, दोपहर 03:10 बजे
भौम प्रदोष व्रत के तीन प्रमुख लाभ
1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार
इस व्रत को करने से व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है और लंबी आयु का वरदान मिलता है। मानसिक शांति और रोगों से मुक्ति मिलती है, जो कि जीवन में संतुलन और सुकून लाता है।
2. कुंडली के मांगलिक दोषों से मुक्ति
भौम प्रदोष व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जिनकी कुंडली में मांगलिक दोष होते हैं। यह व्रत मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव को शांत करता है और हनुमान जी की कृपा से हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।
3. आर्थिक समस्याओं और कर्ज से छुटकारा
जो लोग आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे होते हैं या कर्ज के बोझ तले दबे होते हैं, उनके लिए भौम प्रदोष व्रत एक अचूक उपाय माना गया है। इस व्रत से व्यक्ति को धन लाभ और समृद्धि प्राप्त होती है।
भौम प्रदोष व्रत का महत्व
भौम प्रदोष व्रत करने से न केवल भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि हनुमान जी भी अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। इस व्रत को करने से मंगल ग्रह के दोषों का निवारण होता है और जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। शिव और हनुमान जी की पूजा इस दिन विशेष फलदायी होती है, इसलिए इस व्रत का महत्व सनातन धर्म में बहुत अधिक है।
भौम प्रदोष व्रत: मंगल दोष से मुक्ति का उत्तम अवसर/उपाय
1. व्रत की महिमा और उसका महत्व
भौम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व भगवान शिव की कृपा और मंगल दोष से मुक्ति के लिए माना गया है। इस दिन व्रत रखने और विशेष पूजा-अर्चना करने से मंगल दोष के अशुभ प्रभावों से राहत मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
2. व्रत की प्रारंभिक विधि
स्नान और शुद्धि:
व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें। मन में भगवान शिव की आराधना का संकल्प लें।भगवान शिव का अभिषेक:
भगवान शिव की पूजा करते समय उन्हें गंगा जल से अभिषेक करें। इसके साथ ही बेलपत्र, आक के फूल, भांग, धतूरा, मदार पुष्प, और पंचगव्य अर्पित करें।
3. विशेष अर्पण और भोग
खीर का भोग:
भगवान शिव को साबुत चावल से बनी खीर अर्पित करें, जो इस व्रत का मुख्य भोग होता है। इसके साथ ही, माता पार्वती और गणेश जी की भी पूजा करें।
हनुमान जी की पूजा:
शाम के समय हनुमान जी के सामने चमेली के तेल का दीपक जलाएं और उन्हें हलवा-पूरी का भोग अर्पित करें।
4. मंत्र जाप और स्तोत्र पाठ
भगवान शिव के मंत्र:
व्रत के दौरान ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
हनुमान जी का स्तोत्र:
हनुमान चालीसा और ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करें।
मंगल देव के मंत्र:
मंगल दोष से मुक्ति पाने के लिए ‘ॐ ऐं भ्रीम हनुमते, श्री राम दूताय नमः’ मंत्र का जाप करें। साथ ही मंगल देव के 21 नामों का जाप करें।
5. व्रत का फल और विशेष लाभ
इस व्रत का पालन करने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं, और मंगल दोष के कारण उत्पन्न समस्याओं का निवारण होता है। भगवान शिव और हनुमान जी की कृपा से स्वास्थ्य, धन, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।