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Chandragarhan 2025: राजस्थान में चंद्रग्रहण का अद्भुत नज़ारा, जानें सूतक काल की धार्मिक मान्यताएं और पितृपक्ष की शुरुआत

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Chandragrahan 2025, राजस्थान में इस साल का आखिरी चंद्रग्रहण देखा गया। जयपुर के गोविंददेवजी मंदिर में विशेष दर्शन हुए, जबकि खाटूश्यामजी मंदिर में पट बंद रहे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक काल में पूजा अर्चना नहीं होती।

Bharti Sharma
Written by: Bharti Sharma - Sub Editor
3 Min Read

चंद्रग्रहण 2025: राजस्थान में इस साल का आखिरी चंद्रग्रहण रात 1 बजकर 27 मिनट पर समाप्त हुआ। यह ग्रहण रविवार रात 9:57 बजे शुरू हुआ और करीब 3 घंटे 28 मिनट तक चला। इसे पूर्ण चंद्रग्रहण या ब्लड मून कहा जाता है। रात 11 बजे से 12:22 बजे तक 82 मिनट का पूर्ण चंद्रग्रहण रहा। इस दौरान पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आई, जिससे चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ी और चांद लाल-नारंगी रंग का दिखाई दिया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक काल शुरू हो जाता है, जिसके दौरान मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं और पूजा-अर्चना नहीं की जाती।

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शुभ मुहूर्त जानकारी (Shubh Muhurt Jankari)

तिथि शुरुआत – 08 अक्टूबर, रात 09:57 बजे

तिथि समाप्ति – 09 अक्टूबर, रात 01:27 बजे

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ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04:02 बजे से 04:42 बजे तक

विजय मुहूर्त – दोपहर 02:39 बजे से 03:35 बजे तक

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गोधूलि मुहूर्त – शाम 07:16 बजे से 07:36 बजे तक

निशिता काल – रात 12:00 बजे से 12:40 बजे तक

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गोविंददेवजी मंदिर के विशेष प्रबंध

जयपुर के गोविंददेवजी मंदिर में इस बार चंद्रग्रहण के दौरान पट खुले रहे। इस विशेष अवसर पर ठाकुर जी को सफेद वस्त्र धारण कराए गए। मंदिर में ग्रहण झांकी के दर्शन हुए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आमतौर पर ग्रहण के समय मंदिर बंद रहते हैं, लेकिन गोविंददेवजी मंदिर में इस बार भक्तों को दर्शन का लाभ मिला।

खाटूश्यामजी और अन्य मंदिरों की स्थिति

सीकर के खाटूश्यामजी मंदिर में भक्तों के लिए दर्शन बंद कर दिए गए थे। ग्रहण समाप्ति के बाद श्याम बाबा की विशेष झांकी और भोग की व्यवस्था की गई। पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर, नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर और अजमेर के अन्य प्रमुख मंदिरों में भी शाम से ही कपाट बंद रखे गए।

पितृपक्ष की शुरुआत के साथ चंद्रग्रहण

ज्योतिष के अनुसार, इस बार चंद्रग्रहण के साथ ही पितृपक्ष की शुरुआत हुई। पूर्णिमा का श्राद्ध सूतक से पहले ही करना आवश्यक था। पितृपक्ष आश्विन अमावस्या यानी 21 सितंबर को समाप्त होंगे। जिन पूर्वजों की तिथि ज्ञात नहीं होती या किसी कारण श्राद्ध छूट जाता है, उनका श्राद्ध पूर्णिमा को ही किया जाता है।

चंद्रग्रहण का धार्मिक महत्व

चंद्रग्रहण को लेकर धार्मिक मान्यताएं काफी प्रचलित हैं। माना जाता है कि इस दौरान पूजा-पाठ और धार्मिक कार्य करने से बचना चाहिए। ग्रहण के समय मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं और सूतक काल के दौरान किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना नहीं की जाती। यह समय ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है।

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Bharti Sharma
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भारती शर्मा पिछले कुछ सालों से पत्रकारिता क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। अपने कार्य क्षेत्र रहते हुए उन्होंने धर्म-कर्म, पंचांग, ज्योतिष, राशिफल, वास्तु शास्त्र, हस्तरेखा व समुद्र शास्त्र जैसे विषयों पर लेखन किया हैं। इसके अलावा उनको लोकल और ग्राउंड रिपोर्टिंग का भी अनुभव हैं। फिलहाल भारती शर्मा 89.6 एफएम सीकर में आरजे की पद संभालते हुए सीकर अपडेट शो का संचालन करती हैं और बतौर ज्योतिष शास्त्र लेखन कर रही हैं।
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