Gangaur 2025 Kab Hai: गणगौर, जिसे गौरी तीज या सौभाग्य तीज भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। गणगौर पूजा भगवान शिव (गण) और माता पार्वती (गौर) को समर्पित है। यह न केवल वैवाहिक सौभाग्य का प्रतीक है, बल्कि प्रेम, समर्पण और स्त्री-शक्ति का भी उत्सव है।
गणगौर 2025: कब और कैसे मनाया जाएगा? (Gangaur 2025 Date Time)
राजस्थान की संस्कृति में रचे-बसे त्योहारों में से एक गणगौर नारी शक्ति, प्रेम और सौभाग्य का प्रतीक है। यह केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं, बल्कि लोक परंपराओं, गीत-संगीत और रिश्तों की डोर को मजबूती देने वाला पर्व भी है। इस त्योहार की विशेषता इसकी 18 दिन की साधना और भक्ति है, जो होली के दूसरे दिन से प्रारंभ होकर चैत्र शुक्ल तृतीया को अपने चरम पर पहुँचती है।
गणगौर तिथि और शुभ मुहूर्त (Gangaur 2025 Tithi)
- गणगौर 2025 की तिथि:
- तृतीया तिथि प्रारंभ: 31 मार्च 2025, सुबह 09:11 बजे
- तृतीया तिथि समाप्त: 01 अप्रैल 2025, सुबह 05:42 बजे
इस दिन महिलाएँ उपवास रखती हैं और माता गौरी से अपने पति की लंबी उम्र और सुखद दांपत्य जीवन की प्रार्थना करती हैं।
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शिव-पार्वती की अमर प्रेम कथा: (Gangaur Shiv Parvati Katha)
गणगौर का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। उनके प्रेम, तपस्या और समर्पण को यह पर्व श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
सुहागन और कुंवारी कन्याओं के लिए विशेष पर्व:
- विवाहित महिलाएँ इस दिन उपवास रखकर अपने पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं।
- कुंवारी कन्याएँ मनचाहा वर पाने के लिए देवी पार्वती की पूजा करती हैं।
गणगौर पूजन की संपूर्ण विधि: (Gangaur 2025 Puja Vidhi)
- स्नान और श्रृंगार: महिलाएँ प्रातः स्नान कर लाल, पीले या हरे वस्त्र धारण करती हैं।
- मूर्ति स्थापना: भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाकर उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाए जाते हैं।
- शृंगार अर्पण: माता गौरी को सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, काजल, मेहंदी आदि अर्पित किए जाते हैं।
- पवित्र जल (सुहाग जल) का छिड़काव: चांदी का सिक्का, सुपारी, पान, हल्दी, कुमकुम आदि मिलाकर जल तैयार किया जाता है और इसे परिवार के सदस्यों पर छिड़का जाता है।
- चूरमा का भोग: माता गौरी को चूरमा, गुड़, और फल अर्पित किए जाते हैं।
लोकगीत और पारंपरिक नृत्य:
गणगौर उत्सव के दौरान महिलाएँ पारंपरिक गीत गाती हैं और लोकनृत्य करती हैं। यह नृत्य शिव-पार्वती, ब्रह्मा-सावित्री और विष्णु-लक्ष्मी की महिमा को समर्पित होते हैं।
गणगौर विसर्जन: विदाई का भावुक पल
त्योहार के अंतिम दिन, गौरी और इस्सर (शिव) की मूर्तियों को बगीचे में सुंदर जुलूस के साथ ले जाया जाता है और फिर जल में प्रवाहित किया जाता है। यह विदाई का भावुक क्षण होता है, जिसमें महिलाएँ माता गौरी से पुनः अगले वर्ष लौटने का आग्रह करती हैं।
राजस्थान की शान: गणगौर महोत्सव
राजस्थान में गणगौर केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक भव्य सांस्कृतिक उत्सव भी है। जयपुर, उदयपुर, जोधपुर और बीकानेर में इस अवसर पर विशेष शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं, जिनमें हाथी, घोड़े, ऊँट, बैंड-बाजे और सजीव झांकियाँ शामिल होती हैं।
लोकगीत और गणगौर की सवारी:
गणगौर पर्व का मुख्य आकर्षण लोकगीत और परंपरागत सवारी होती है। राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएँ पारंपरिक गीत गाते हुए गणगौर के गीत गाती हैं, जिनमें गौरी की विदाई और शिव से उनके पुनर्मिलन की भावनाएँ व्यक्त की जाती हैं।
गणगौर: केवल पर्व नहीं, जीवनशैली का प्रतीक
गणगौर नारीत्व, प्रेम और समर्पण का उत्सव है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि धैर्य, प्रेम और श्रद्धा से किए गए कार्य जीवन में सुख और सौभाग्य का संचार करते हैं। यही कारण है कि राजस्थान में गणगौर केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि संस्कारों की अमूल्य धरोहर है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोई जाती है।
पर्यटन और लोक संस्कृति का मेल
गणगौर महोत्सव के दौरान विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में राजस्थान आते हैं और इस भव्य परंपरा का हिस्सा बनते हैं।