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Shekhwati University Gift: सीकर शेखावाटी विश्वविद्यालय को सेना का अनोखा तोहफा – जानें टी-55 टैंक की खासियत

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Sikar University Gift: सीकर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय को भारतीय सेना की ओर से एक अनोखा तोहफा मिला है। सेना ने टी-55 टैंक और दो एंटी-टैंक तोपें विश्वविद्यालय को दी हैं, जो छात्रों में देशभक्ति की भावना को बढ़ाएंगी।

Rupali kumawat
Written by: Rupali kumawat - Sub Editor
3 Min Read

 

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Shekhwati University Gift: सीकर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय को भारतीय सेना ने एक अनोखा तोहफा दिया है। सेना ने उन्हें टी-55 टैंक और दो एंटी-टैंक तोपें प्रदान की हैं, जो अब विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों को भारतीय सेना के शौर्य और देशभक्ति की याद दिलाएंगी। यह खास उपहार विद्यार्थियों को सेना के अदम्य साहस और गर्वित इतिहास से रूबरू कराएगा।

सेना का अनमोल तोहफा

शेखावाटी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अनिल कुमार राय ने बताया कि ये टैंक और तोपें सिर्फ हथियार नहीं, बल्कि शौर्य और बलिदान के प्रतीक हैं। इनसे छात्रों में देशभक्ति और सेना के प्रति सम्मान की भावना जागेगी। ये टैंक पुणे के किरकी से मंगलवार को पहुंचा, जबकि तोपें भी जल्द ही जबलपुर से यहां पहुंचने वाली हैं। इन्हें विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर ‘शौर्य दीवार’ के पास रखा जाएगा।

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सिर्फ अवशेष नहीं, प्रेरणा का स्रोत

प्रो. राय के अनुसार, ये सैन्य अवशेष छात्रों को साहस और कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाते हैं। वे युवाओं को रक्षा सेवाओं में करियर बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे प्रतीक विश्वविद्यालय परिसर में राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देते हैं, जो युवाओं के मन में सेना के प्रति सम्मान और प्रेरणा जगाते हैं।

टी-55 टैंक की खासियत

टी-55 टैंक सोवियत संघ में बना एक प्रमुख युद्धक टैंक है, जिसे भारतीय सेना ने 1960 के दशक में अपनाया था। यह लगभग 36 टन वजनी टैंक 100/105 मिमी की मुख्य तोप से लैस था। 1965 और 1971 के युद्धों में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेषकर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में। इसने दुश्मन के टैंकों को नष्ट कर भारतीय सेना की विजय में अहम योगदान दिया, जिससे यह भारतीय सेना के शौर्य का प्रतीक बन गया।

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तोपों की ऐतिहासिक भूमिका

भारतीय सेना से मिली ये दो एंटी-टैंक तोपें युद्ध में बख्तरबंद वाहनों को नष्ट करने में अहम रही हैं। इन्हें जमीन से या हल्के वाहनों पर लगाकर इस्तेमाल किया जाता था। 1971 के युद्ध समेत कई अभियानों में इनका प्रभावी उपयोग हुआ, जिससे ये टैंक-रोधी रणनीतियों में महत्वपूर्ण साबित हुईं।

शेखावाटी का वीरता का इतिहास

शेखावाटी क्षेत्र को ‘वीरों की भूमि’ के रूप में जाना जाता है। राजस्थान के कुल शहीदों में से कई शहीद इसी क्षेत्र से हैं। 1971 के युद्ध में सीकर जिले के 50 से अधिक वीर सपूतों ने देश की रक्षा में सर्वोच्च बलिदान दिया। कारगिल युद्ध से लेकर अन्य मोर्चों तक, शेखावाटी के योद्धाओं ने मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर किए हैं। विश्वविद्यालय को मिली ये युद्ध-ट्रॉफी इसी शौर्य और विजय की अमर गाथा को जीवंत करती हैं।

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Rupali kumawat
Sub Editor
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रुपाली कुमावत पिछले कई वर्षों से लेखन क्षेत्र में कार्यरत हैं। उनको हिंदी कविताएं, कहानियां लिखने के अलावा ब्रेकिंग, लेटेस्ट व ट्रेंडिंग न्यूज स्टोरी कवर करने में रुचि हैं। उन्होंने राजस्थान यूनिवर्सिटी से BADM में M.Com किया हैं एवं पंडित दीनदयाल शेखावाटी यूनिवर्सिटी से family law में LL.M किया हैं। रुपाली कुमावत के लेख Focus her life, (राजस्थान पत्रिका), सीकर पत्रिका, https://foucs24news.com, खबर लाइव पटना जैसे मीडिया संस्थानों में छप चुके हैं। फिलहाल रुपाली कुमावत 89.6 एफएम सीकर में बतौर न्यूज कंटेंट राइटर अपनी सेवाएं दे रही हैं।
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