Mental health Coach Neha Verma Interview: बोर्ड परीक्षाओं का सीजन शुरू होते ही बच्चों पर तनाव का बोझ बढ़ जाता है। कई बार यह तनाव इतना अधिक हो जाता है कि बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर इसका बुरा असर पड़ता है। आरजे रुपाली कुमावत ने मेंटल हेल्थ कोच और काउंसलर नेहा वर्मा से इस विषय पर चर्चा की और जाना कि कैसे बोर्ड परीक्षाओं का तनाव बच्चों को मानसिक रूप से प्रभावित कर सकता है और इससे निपटने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। इंटरव्यू के अंश।
प्रश्न: बोर्ड एग्जाम के समय बच्चे कौनसे मेंटल स्ट्रेस से गुजरते हैं?
उत्तर: जनरली सारे बच्चे अलग-अलग तरह का स्ट्रेस महसूस करते हैं। उसमें बिहेवियर स्ट्रेस भी होता है, मेंटल स्ट्रेस होता है, और फिजिकल स्ट्रेस भी होता है। जैसे आपने देखा होगा आप बिना मर्जी के स्कूल आते हैं तो उन्हें उल्टिया हो जाती हैं। एग्जाम में दोनों क्वेश्चन उनको आ रहे होते हैं और वो दोनों ही स्किप कर जाते हैं, क्योंकि वे कंफ्यूज होते हैं, उसके साथ—साथ वे ध्यान नहीं दे पाते। एंग्जायटी, डिप्रेशन और स्ट्रेस ये एग्जाम में बच्चे को खुद से फील होता हैं। इसमें बच्चे के माता-पिता बहुत बड़ा रोल निभाते हैं, अगर वे बच्चे के साथ ज्यादा घुलेंगे—मिलेंगे तो ज्यादा अच्छे से बच्चे को समझ पायेंगे। बोर्ड एग्जाम आने वाले हैं अचानक से ये सारी चीजें एक साथ ना हो, तो बच्चे को वही पैटर्न 1 से 1.5 महीने पहले करना चाहिए जो मेन एग्जाम मे आएगा, क्योंकि मनुष्य का दिमाग़ इतना समझदार हैं उसे हम जो समझाते हैं वही वो वही करता हैं, अगर हमने सोच रखा हैं कि ये बात हमें नहीं माननी हैं तो हम नहीं करेंगे। ये सब हमें इसलिए करना हैं, ताकि बच्चे बहुत शांत तरीके से परीक्षा दे सके।
प्रश्न: स्ट्रेस का बच्चों की मानसिक स्थिति, शारीरिक स्थिति पर असर पड़ता है?
उत्तर: बिल्कुल, बहुत फर्क पड़ता है बच्चा पूरी तरह डिस्टर्ब भी हो सकता है, जो उसकी पढ़ाई को भी और उसके मनोभाव को भी प्रभावित करेगा। इसमें सबसे बड़ा रोल तो माता—पिता का होता है, वे अपने बच्चे को समय दें और साथ घुले-मिले बच्चे को योगा कराएं, ताकि वो शांति से पुरा ध्यान एग्जाम पर देगा, कंफ्यूजन की स्थिति पैदा नहीं होगी। इसके साथ ही डांस क्लास ज्वाइन कर सकते हैं, बुक्स पढ सकते हैं, गार्डनिंग अच्छी चीज हैं। बहुत सारी स्किल्स हैं, जिस पर वे ध्यान दे सकते हैं। मेन पेरेंट्स को उसके ड्यूरेशन में एक्टिव रहना होगा, ताकि बच्चा एक्टिव रहे, प्रोडक्टिव रहे। प्रोडक्टिविटी इन सारी चीजों में में एलिमेंट है, अगर बच्चा बहुत ज्यादा प्रोडक्टिव है तो धीरे-धीरे उन सारी चीजों में ओवर कम्प आ जायेगा चाहे स्ट्रेस हो, डिप्रेशन हो या फिर किसी प्रकार का डिसऑर्डर हो, ये सारी चीजें अपने आप सही हो जाएंगी।
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प्रश्न: अपने बच्चों को दूसरे से कंपेयर करना कितना सही है?
उत्तर: बच्चों का मन सहज सुन्दर होता है, जितना प्रेशर डालेंगे वो गलत तरफ जायेगा। आप उसको फ्री छोड़ दो, आपको उसकी एक्टिविटीज को सुपरवाइज करना है। आपको देखना है बच्चा किस टाइम पर क्या कर रहा है और उसमें इंवॉल्व होना है, लेटर ऑन द चाइल्ड इज गोइंग टू रिलाइज वाट इज इंपॉर्टेंट, वाट इज राइट एंड वाट इज रोंग। पेरेंट्स के लिए तो अपने बच्चों को प्रेशर देना गलत हो जाएगा, उन्हें आजाद रखना चाहिये। अगर बच्चे के 2-4 नंबर कम भी आ रहे हैं, तो इस चीज को सामान्य लेना चाहिए और कमी कहा रही, वहां काम करना चाहिए। कुछ नंबर बच्चों के टोटल फ्यूचर को फिक्स नहीं कर सकते। पढ़ाई हमारी जिंदगी का एक हिस्सा है, जिंदगी नहीं है।
प्रश्न: पेरेंट्स को कैसे पता चले कि हमारा बच्चा मेंटल स्ट्रेस से गुजर रहा है?
उत्तर: देखिए पहले तो यह जो मैं आपको ऑलरेडी बता चुकी हूं कि उनको इंवॉल्व होना पड़ेगा उसके रूटीन में, ताकि वह उसकी हरेक एक्टिविटी को नोट कर पाए। आजकल बड़े बच्चे स्क्रीन को ज्यादा टाइम दे रहे हैं, तो उनको जैसे गूगल एक्टिविटी चालू रखनी चाहिए, उसके सोशल साइट्स पर कितना टाइम बच्चा कंज्यूम कर रहा है, वह चेक करना चाहिए और मैक्सिमम तो देखो अभी स्कूलिंग में बच्चों को सोशल साइंस का कोई रिक्वायरमेंट होता नहीं है। टेक्नोलॉजी हमारे जीवन का एक इंर्पोटेंट एलिमेंट बन चुका है और हम टोटली उसपर डिपेंड भी हो चुके हैं, लेकिन पेरेंट्स को यह चीज समझनी होगी किसी भी चीज की आदत बहुत खतरनाक साबित हो सकती है, तो वही आप देख रहे हो कि बच्चे जो फोन, टीवी में देखते हैं, उसे ही सच मान बैठते हैं। तो माता -पिता को ध्यान देना होगा, हरेक एक्टिविटी पर नजर रखनी होगी कि बच्चा कहां पर जा रहा है, उसके दोस्त कैसे हैं, कैसे वो अपने एकेडमिक में परफॉर्म कर रहा है और उसके साथ मिल—बैठ के बात करके एंड द मोस्ट इंपॉर्टेंट विद योर किड्स अगर आप बड़ों की तरह उन पर जोर देंगे, उसकी बात को गलत ही बोलते जाएंगे, तो बच्चा अपने पोटेंशियल को ग्रो ही नहीं कर पाएगा।
प्रश्न: डिप्रेशन से बच्चा बाहर कैसे आए?
उत्तर: बच्चों को एग्जाम टाइम के अंदर होता है कि वह अपने एग्जाम टाइम टेबल के अकॉर्डिंग इस शेड्यूल को एक डेढ़ महीने पहले से फॉलो करना शुरू कर दे, वह बहुत हेल्पफुल रहेगा। उसमें उसका कंसंट्रेशन, उसके कन्फ्यूजन सब चीज दूर हो जाएंगी। दूसरा मेडिटेशन, मैं खुद ही फील करती हूं कि जिस दिन 4 बजे उठकर मैं आधा घंटा अपनी बॉडी को देती हूं तो उस दिन ज्यादा मैं अपने आप को एनर्जेटिक महसूस करती हूं। तो बच्चों को मेडिटेशन करना चाहिए। शाम के टाइम पर अगर वे खेलते हैं तो यह भी बहुत अच्छी बात है। इससे वे अपनी स्ट्रेस से दूर रह सकते हैं।
प्रश्न: स्कूल इसके अंदर क्या रोल निभाता है?
उत्तर: स्कूल सबसे बड़ा रोल निभाता है। बच्चा जब पहली बार स्कूल आता है तो उसे स्कूल आना अच्छा नहीं लगता। फिर स्कूल कुछ ऐसा करता है, तो उस बच्चे को इंटरेस्ट आता है। बच्चा स्कूल में बहुत कुछ सीखता है बोलना, रिस्पेक्ट करना। काफी सारे बच्चे हमारे पास ऐसे आते हैं जो अपनी नेटिव लैंग्वेज बोलते हैं और फिर धीरे-धीरे स्कूल के प्रोफेशनल एनवायरमेंट में वह घुल—मिल जाते हैं। एक मां होने की नाते आपको पता होगा कि अगर उसकी मैम ने कुछ गलत किया है तो भी उसे अपनी मेम ही सही लगेगी, चाहे आप ज्यादा पढ़े लिखे हो, चाहे उसे ज्यादा अच्छे से सीखा रहे हो, लेकिन उसे अपनी मेम की लिखी बात ही सही लगेगी। बच्चा पहले तो देखो मां से सीखता है, उसके बाद में जो प्रोफेशनल स्किल्स होते हैं, प्रोडक्टिविटी होती है, कंपटीशन होता है, ये सारी चीजें वो स्कूल से सीखता हैं।
प्रश्न: बोर्ड एग्जाम आने वाले हैं, तो बच्चों को आप क्या मैसेज देना चाहेंगी?
उत्तर: बच्चों को यही कि डिप्रेशन एंजायटी सभी के साथ होता है, बड़ों के साथ भी होता है काम का प्रेशर, पढ़ाई का प्रेशर, सब चीजों का प्रेशर, तो बच्चे किसी भी हालत में अपने आप को डिप्रैस महसूस ना करें, अपने आप को मोटिवेट रखें और माता-पिता से मैं कहना चाहूंगी कि अपने बच्चों को समझें, एग्जाम में उनका सहारा बने, उनको सपोर्ट करें और आपको लगता है कि आपके बच्चे को किसी भी तरह से आपकी सहायता चाहिए तो उन्हें आप हेल्प कीजिए और बच्चों के साथ मिलकर रहे, क्योंकि आपसे अच्छा आपके बच्चे को कोई नहीं जानता है।