Colonel Sofia Qureshi and Vyomika singh: कभी सोचा है, जब सरहद पर देश की हिफाजत की बात हो और पहली पंक्ति में आपको एक महिला अफसर दिखे, तो कैसा लगेगा? आंखों में आत्मविश्वास, होठों पर दृढ़ता और दिल में देश के लिए जुनून। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने वो तस्वीर हकीकत में बदल दी — जब भारत की बेटियों ने न सिर्फ दुश्मन को करारा जवाब दिया, बल्कि पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि अब देश की रक्षा केवल पुरुषों की जिम्मेदारी नहीं रही।
पहली बार जब महिलाएं बनीं सेना की आवाज
भारतीय सैन्य इतिहास में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक ऐसा मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने नारी शक्ति को पहली बार निर्णायक भूमिका में दिखाया। इस मिशन की सबसे खास बात यह रही कि पहली बार भारतीय सेना की महिला अफसरों ने फ्रंटलाइन पर न केवल कमान संभाली, बल्कि एक ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर देश को मिशन की जानकारी भी दी। इस दौर में दो नाम उभरकर सामने आए — कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह।
कर्नल सोफिया: वडोदरा की बेटी, जो बनी राष्ट्र की शान
कर्नल सोफिया कुरैशी का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। वडोदरा की रहने वाली सोफिया ने महज 17 साल की उम्र में सेना का दामन थामा और अपनी मेहनत से कर्नल के ओहदे तक पहुंचीं। संयुक्त राष्ट्र के कांगो मिशन में उन्होंने शांतिरक्षक के रूप में काम किया और ‘फोर्स 18’ जैसे अंतरराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास में भारत का नेतृत्व कर इतिहास रच दिया।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ में जब भारत की रणनीति को लेकर पूरी दुनिया की नजरें सवाल पूछ रही थीं, तब कर्नल सोफिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोर्चा संभालते हुए पूरे आत्मविश्वास से देश और दुनिया को हर पहलू की जानकारी दी। उनकी दृढ़ता और स्पष्टता ने यह साबित कर दिया कि महिलाएं अब नीतियों की रचना से लेकर उनके क्रियान्वयन तक हर भूमिका में सक्षम हैं।
व्योमिका सिंह: जहां हौसला बोलता है, वहां आकाश भी सीमित नहीं
भारतीय वायुसेना की जांबाज अफसर विंग कमांडर व्योमिका सिंह भी इस ऐतिहासिक मिशन का अभिन्न हिस्सा रहीं। तकनीकी पक्ष हो या मिशन की योजना व्योमिका हर जगह सक्रिय रहीं। उन्होंने न सिर्फ अपने अनुभव से ऑपरेशन को मजबूती दी, बल्कि कर्नल सोफिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उस ऐतिहासिक प्रेस ब्रीफिंग का हिस्सा बनीं, जिसे लाखों भारतीयों ने गौरव से देखा।
उनकी उपस्थिति ने यह साबित किया कि आज की महिलाएं सिर्फ कॉकपिट या कंट्रोल रूम तक सीमित नहीं, बल्कि रणनीति के केंद्र में खड़ी हैं। वे न केवल कार्रवाई की योजना बनाती हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर उसे अंजाम तक भी पहुंचाती हैं।