Lord Shiva Story: भगवान शिव, जिन्हें आदिदेव, आदिश्वर, आदिगुरु और महादेव के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सावन के पवित्र महीने में, विशेष रूप से सावन सोमवार को, शिवभक्त भगवान शिव की उपासना करते हैं।
आइए जानते हैं, महादेव शिव के 4 प्रमुख रहस्यों के बारे में।
1. आदिश्वर (प्रथम ईश्वर)
भगवान शिव को आदिश्वर कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ही सर्वप्रथम धरती पर जीवन का प्रचार-प्रसार किया था। ‘आदि’ का अर्थ है प्रारंभ, और ‘ईश्वर’ का अर्थ है देवता। इस प्रकार, आदिश्वर का अर्थ है सबसे पहले ईश्वर। शिव का एक अन्य नाम ‘आदिश’ भी है, जिसका अर्थ है प्रारंभिक ईश। जगदिश्वर और विश्वेश्वर जैसे नाम भी इसी का विस्तार हैं, जो उन्हें सम्पूर्ण जगत और विश्व का ईश्वर घोषित करते हैं।
2. आदिदेव (प्रथम देव)
शिव को आदिदेव कहा जाता है क्योंकि वे भारत की विभिन्न प्राचीन जातियों जैसे असुर, दानव, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, और आदिवासियों के आराध्य देव हैं। शैव धर्म भारतीय आदिवासियों का धर्म है और सभी दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव धर्म से जुड़े हुए हैं। इसलिए, उन्हें आदिदेव या प्रथम देव कहा जाता है।
3. आदिगुरु (प्रथम गुरु)
भगवान शिव को आदिगुरु कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ही गुरु-शिष्य परंपरा की नींव रखी थी। उनके सात प्रमुख शिष्य, जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि कहा जाता है, ने शिव के ज्ञान को संपूर्ण पृथ्वी पर फैलाया। ये सप्तऋषि थे- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेंद्र, प्राचेतस मनु, और भरद्वाज। इसके अलावा, अगस्त्य मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। शिव के इस ज्ञान की परंपरा में आदिगुरु दत्तात्रेय, आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ, और गुरु गोरखनाथ जैसे महापुरुषों का नाम भी शामिल है।
4. महादेव (देवों के देव)
भगवान शिव को महादेव कहा जाता है क्योंकि वे सभी देवताओं के देव हैं। आदिनाथ भगवान शिव को शंकर, भोलेनाथ, और देवाधिदेव भी कहा जाता है। शिव को हर युग में पूजनीय माना गया है। वे सतयुग में समुद्र मंथन के समय, त्रेता में राम के समय, द्वापर युग में महाभारत के समय और कलियुग में विक्रमादित्य के समय भी पूजित थे। भविष्य पुराण के अनुसार, राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव के दर्शन मरुभूमि पर हुए थे।