Sikar Freedom Fighter: 1857 की क्रांति के साथ ही देश में आजादी का आंदोलन आरंभ हुआ था। उस दौरान ब्रिटिशर्स को रोकने के लिए सीकर के डूंगर सिंह व ठाकुर जवाहर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी।
सीकर में क्रांति जगाने वाले डूंगर सिंह व ठाकुर जवाहर सिंह की कहानी वीरता से भरी है।
सीकर में विद्रोह करने वाले क्रांतिकारी (Sikar Freedom Fighter Name)
राजस्थान में सामन्तवाद के सबसे क्रूर और घृणित रूप अंग्रेजों के शासनकाल की देन है। मगर राजस्थान के वीरों ने अंग्रेजों को कूचलने के लिए शुरू से ही क्रांति की आग जला दी। सीकर के दो वीर डूंगर जी और जवाहर जी को इसका श्रेय जाता है। इन्होंने सीकर में विद्रोह किया था।
“शेखावटी ब्रिगेड” (Shekhawati Brigade) का विरोध
अंग्रेजों ने “शेखावटी ब्रिगेड” (Shekhawati Brigade) की स्थापना की थी। बताया जाता है कि “शेखावटी ब्रिगेड” के विद्रोह में 1834 में डूंगजी के नेतृत्व में इस ब्रिगेड का कुछ सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। इस तरह से डूंगजी अंग्रेजों की नजर में खटकने लगे।
डूंगजी को अंग्रेजों ने कर लिया कैद
बात 1903 की है। डूंगजी के साले भैरूसिंह ने इनको रात के खाने पर बुलाया था। उसी दौरान अधिक शराब पिलाकर डूंगजी को गिरफ्तार कराया गया। अंग्रेजों ने डूंगजी को आगरा के जेल में कैद किया था। इनकी गिरफ्तारी के बाद सीकर के क्रांतिकारियों में और अधिक गुस्सा फूट पड़ा।
डूंगजी की पत्नी ने जवाहरजी को फटाकर लगाई।
जेल पर हमला और डूंगजी की आजादी
इसके बाद जाकर जवाहरजी ने एक टीम बनाकर डूंगजी को आजाद कराने की जिम्मेदारी ली। जवाहरजी के नेतृत्व में सीकर के क्रांतिकारियों के दल ने आगरा के किले में जोरदार हमला बोला और वो डूंगजी को वहां से आजाद कराके ले गए। डूंगजी के आने से क्रांतिकारियों को और बल मिला।
नकली बारात निकालकर जेल पर हमला
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि डूंगजी को आजाद कराने के लिए एक बारात (नकली) निकाली गई। वो लोग आगरा बारात लेकर गए और वहां पर दूल्हे के पिता के मरने का बहाना बनाया। उसके बाद आगरा में करीब 15 दिन ठहरकर उनको जेल से निकाल लाए। इस दौरान अन्य क्रांतिकारियों को भी आजाद कराया गया।
लोटिया जाट और करणा मीणा, इन दो क्रांतिकारियों की वीरता व बुद्धिमानी के कारण डूंगजी आजाद हुए थे। करीब 400 से अधिक क्रांतिकारियों के साथ आगरा जेल पर हमला बोला गया था।
कौन थे डूंगजी (Who was Dungji)
डूंगजी और जवाहरजी दोनों काका-भतीजा थे। जानकारी के मुताबिक, डूंगजी अंग्रजों के यहां काम करते थे। शेखावटी ब्रिगेड में रिसालेदार थे। मगर विद्रोह करने के बाद वो अंग्रेजों के खिलाफ आ गए। इस तरह से वो क्रांति के लिए धन जुटाने का काम करते थे। अगर धन मांगने पर नहीं मिलता तो वो लूटपाट करके धन जुटाने का काम करते थे।
अंग्रेजों का साथ देने वाले धनिकों व अंग्रेजों के छावनियों को भी इन्होंने लूटा था।
तांत्या टोपे के साथ थे डूंगजी और जवाहरजी
तांत्या टोपे भी जब सीकर आए थे तो वहां पर डूंगजी और जवाहरजी ने उनके साथ मिलकर काम किया था। साथ ही तांत्या टोपे को जो भी जरूरत थी उनको मदद की गई थी। सीकर की क्रांति में तांत्या टोपे का योगदान है इसलिए उनका स्मारक भी सीकर में है।
बताया जाता है कि डूंगजी जैसलमेर में गिरदड़ा की काकीमैडी पहुंच गए, जहां जोधपुर की सेना ने उन्हें धोखे से कैद करके अंग्रेजों की सेना के हवाले कर दिया था। वहां उन्हें नजर बंद कर कैद में रखा गया जहां पर उनका निधन हो गया।
इस तरह से डूंगजी ने देश के लिए जान दे दी।
आज भी शेखावटी के लोकगीतों में डूंगजी और जवाहरजी की वीरगाथा की गूंज सुनाई देती है-
“गोरा हट जा!
राज भरतपुर के रे गोरा हट जा
भरतपुर गढ़ बंका रे गेरा हट जा।
यूं मत जाणै गोरा लड़ै बेटौ जाट के
ओ तो कुंवर लड़ै रे राजा दशरथ को गोरा हट जा।
इसके साथ ही डुंगरजी की गाथा बी कवियों ने गाई है, जिसके पद-पद में ब्रितानियों का विरोध है-
सन् सत्तावन सूं पैलीई, ए जोत जगावण वाण्ठा रहा।
आजादी बाण्ठै दिवलैरी, वण्ठरी लौ का रखवाला हा।”
डूंगजी व जवाहरजी शेखावटी के साथ-साथ देश में अमर हो गए।
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