GBS Outbreak in Pune: महाराष्ट्र के पुणे शहर में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के बढ़ते मामलों के बीच एक चिंताजनक खबर सामने आई है। सोलापुर में इस सिंड्रोम से पहली संदिग्ध मौत दर्ज की गई है। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग ने रविवार को इस मामले की जानकारी दी, लेकिन विस्तृत जानकारी साझा नहीं की। इस घटना ने स्वास्थ्य अधिकारियों और आम जनता के बीच चिंता बढ़ा दी है।
पहला मामला 9 जनवरी को सामने आया था जब एक मरीज को अस्पताल में भर्ती किया गया था। अब पुणे में कुल सक्रिय मामलों की संख्या 101 हो चुकी है, जिनमें से 19 मरीज 9 साल से कम उम्र के हैं और 23 मरीज 50 से 80 वर्ष की आयु के बीच हैं।
GBS Symptoms बैक्टीरिया बना बड़ी वजह, जारी हुई एडवाइजरी
GBS के मामलों में तेजी आने के पीछे मुख्य वजह कैंपीलोबैक्टर जेजुनी नामक बैक्टीरिया को बताया गया है। यह बैक्टीरिया दुनियाभर में GBS के लगभग एक तिहाई मामलों में पाया जाता है। पुणे में अधिकारियों ने पानी के सैंपल लेकर जांच की, लेकिन वहां कैंपीलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया नहीं पाया गया। हालांकि, खड़कवासला बांध के पास एक कुएं में ई. कोलाई बैक्टीरिया का उच्च स्तर पाया गया है।
अधिकारियों ने लोगों को सावधान करते हुए कहा है कि उबला हुआ पानी पिएं और ठंडा खाना खाने से बचें। साथ ही केवल गर्म भोजन का सेवन करने की सलाह दी गई है।
GBS के तेजी से बढ़ रहे हैं मामले
स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि अमूमन हर महीने गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के 2 मरीज सामने आते थे, लेकिन इस महीने अचानक मामलों की संख्या बढ़ गई है। अब तक 25,578 घरों का सर्वे किया जा चुका है और घरों में सैंपलिंग का काम जारी है।
GBS का महंगा इलाज, मुफ्त चिकित्सा की घोषणा
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का इलाज काफी महंगा है। डॉक्टरों के अनुसार, मरीजों को इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन दिए जाते हैं, जिनमें से हर इंजेक्शन की कीमत लगभग 20,000 रुपये है। उदाहरण के तौर पर, पुणे के एक 68 वर्षीय मरीज को इलाज के दौरान 13 इंजेक्शन दिए गए।
हालांकि, महाराष्ट्र के डिप्टी मुख्यमंत्री अजीत पवार ने GBS मरीजों के मुफ्त इलाज की घोषणा की है। पिंपरी-चिंचवाड़ के मरीजों का इलाज VCM अस्पताल में, पुणे नगर निगम क्षेत्र के मरीजों का कमला नेहरू अस्पताल में और ग्रामीण इलाकों के मरीजों का ससून अस्पताल में फ्री इलाज होगा।
GBS के लक्षण और रिकवरी
डॉक्टरों के अनुसार, 80% मरीज इलाज के बाद 6 महीने के भीतर बिना किसी सहारे के चल-फिर सकते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में रिकवरी में एक साल या उससे अधिक समय लग सकता है।
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