World Food Day 2024: भोजन सभी का मूल अधिकार है। इसके लिए हर 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। यह दिन खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना के सम्मान में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद भूख से पीड़ित लोगों के प्रति जागरूकता पैदा करना और खाद्य सुरक्षा और पौष्टिक आहार की ज़रूरत को सुनिश्चित करना है। क्योंकि भजन किसी भी मानव के लिए एक मूलभूत आवश्यकता है।
वर्ल्ड फूड डे 2024 के मौके पर आज बात करेंगे प्रसिद्ध जवाहर जी पांड्या (jawahar ji pandya sikar) के दही बड़े के बारे में। जैसा कि सीकर का मीठा प्याज हर जगह प्रसिद्ध है, उसी तरह जवाहर जी पांड्या के दही बड़े भी काफी पॉपुलर हैं। जवाहर जी पांड्या की सबसे पुरानी दुकान सीकर शहर में नानी गेट के पास है।
कैसे शुरू हुआ कारोबार?
इन दही बड़ों की कहानी लगभग 108 साल पुरानी है। यहां पर राजशाही परिवार के लोगों के घर में जब जश्न होता था तो यह दही बड़े वहां की शान हुआ करते थे। सीकर के राजा माधो सिंह के महल में जब भी कोई दावत रखी जाती थी तो , जवाहरजी पांड्या के हाथों से बने दही बड़े खास आकर्षण होते थे। यहां तक कि, भूतपूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत जब सीकर दौरे पर आते थे तो यहां के दही बड़ों को मंगाकर बड़े चाव से कहते थे।
यह भी जरूर पढ़ें...
New Rules 1 June 2025: ‘ATM, Credit Card से लेकर LPG तक’, आज से बदल गए ये 8 नियम, आप भी नोट कर लीजिए
सीकर में इस स्वाद की शुरुआत दो दोस्तों ने मिलकर की थी। एक ने इसकी रेसिपी तैयार की तो दूसरे दोस्त ने उसे प्रसिद्धी दिलाई। आज ये जायका उसी दोस्त के सरनेम से बिकता है।
इन दही बड़ों की कहानी कुछ ऐसी है कि पन्नालाल इंदौरिया अपने दोस्त चंद्राराम पांड्या के साथ नीम का थाना से सन 1915 मे सीकर आये। इससे पहले दोनों दोस्त मिलकर अपने गांव में बड़े बेचा करते थे। वहां इनके स्वाद को तो पसंद किया जाता था लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं थी तो पहचान बनाने के लिए दोनों दोस्त मिलकर सीकर आए और यह काम शुरू किया।
दोनों दोस्तों ने गोपीनाथ जी के मंदिर के नीचे मिलकर बड़े बेचने शुरू की है और धीरे-धीरे लोगों के बीच में इसका स्वाद बढ़ता गया। और तत्कालीन राजा माधव सिंह के समय यह दही बड़े उनके शाही पहुंच का हिस्सा बने। फिर धीरे-धीरे एक दिन छोड़कर एक दिन दही बड़े राज परिवार में जाने लगे।
धीरे-धीरे डिमांड बढ़ने से 1980 से कचोरी, समोसे और मिर्ची बड़ा आदि भी बेचने लगे परंतु जो दही बड़ों का स्वाद था वह बरकरार रहा। इन दही बड़ों की खासियत यह है कि मोस्टली मूंग की दाल से दही बड़े बनाए जाते हैं लेकिन यह छोले की फली से दही बड़े बनाते हैं जो इनका जाए का अन्य से अलग बनाते हैं।
दूसरा इसके स्वाद का कारण यह है कि यह मसाले मार्केट से रेडीमेड नहीं खरीदते हैं बल्कि इन्हें वह कच्चे मसाले खरीद कर पीसकर बनाते हैं। जब मशीन नहीं होती तो दोनों मित्र अपने हाथो से पीसते थे।
दोस्त के सरनेम को बनाया अपना, खुद का असली सरनेम इंदौरिया
जानकी प्रसाद बताते हैं कि उनका असली सरनेम इंदौरिया है, लेकिन आज भी उनके नाम के पीछे पांड्या लगता है क्योंकि इसी से परिवार की पहचान हैं। उनके दादा पन्नालाल इंदौरिया के दोस्त चंद्राराम पांड्या के दुकान प्रसिद्ध हुई थी। यहां के दही बड़े भी पांड्या के दही बड़े के नाम से फेमस हुए।
दोनों दोस्तों का निधन होने के बाद पन्नालाल जी के बेटे जवाहर जी ने इस कारोबार को संभाला। तब लोग आकर उनसे भी पांड्या जी के दही बड़े मांगते थे। ऐसे में तभी से पांड्या सरनेम ही चल पड़ा।
आज तीसरी पीढ़ी भी इसी बिजनेस से जुड़ी है। सन 1999 तक केवल गोपीनाथ मंदिर की नीचे की दुकान ही थी, लेकिन जैसे जैसे शहर में आबादी बढ़ती गई वैसे-वैसे लोगों की डिमांड पर अलग-अलग हिस्सों में दुकान खोल दी गई।