“Holi Danda Kb Gadega?” यह प्रश्न होली के आगमन से पहले कई लोगों के मन में उठता है। होली (Holi), सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि इसकी तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं। होलिका दहन (Holika Dahan) से करीब एक महीने पहले ‘होली का डांडा’ (Holi Danda) रोपने की परंपरा निभाई जाती है। यह परंपरा भले ही शहरों में कम होती जा रही हो, लेकिन गांवों में इसे आज भी पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाया जाता है।
आइए जानते हैं कि ‘होली का डांडा’ (Holi Danda) क्या है, इसे कब रोपा जाता है, यानी “holi danda kb gadega?”, और इसका धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व क्या है?
क्या है ‘होली का डांडा’ (Holi Danda)?
‘होली का डांडा’ (Holi Danda) गाड़ने की परंपरा भक्त प्रह्लाद (Prahlad) और उनकी बुआ होलिका (Holika) की कथा से जुड़ी हुई है। यह प्रतीकात्मक रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। इसे गांवों और कस्बों के चौक, चौराहे या मंदिर परिसर में रोपा जाता है।
डांडा लगाने की परंपरा (Planting the Holi Danda Tradition):
- गांव या मोहल्ले के किसी सार्वजनिक स्थल पर दो डांडे रोपे जाते हैं।
- ये डांडे आमतौर पर ‘सेम के पौधे’ से बनाए जाते हैं।
- इन डांडों में से एक को भक्त प्रह्लाद (Prahlad) और दूसरे को होलिका (Holika) का प्रतीक माना जाता है।
- होलिका दहन (Holika Dahan) के समय प्रह्लाद (Prahlad) के प्रतीक को बचा लिया जाता है, जबकि होलिका (Holika) के प्रतीक को अग्नि में समर्पित कर दिया जाता है।
- यह परंपरा हमें याद दिलाती है कि जब होलिका (Holika) आग में जलकर भस्म हो गई थी, तब भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद (Prahlad) सुरक्षित बच गए थे।
कब रोपा जाएगा ‘होली का डांडा’ (Holi Danda) 2025 में? “Holi Danda Kb Gadega?”
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ‘होली का डांडा’ (Holi Danda) माघ पूर्णिमा (Magh Purnima) के दिन गाड़ा जाता है।
- इस वर्ष 2025 में माघ पूर्णिमा (Magh Purnima) 12 फरवरी, बुधवार को पड़ रही है।
- इसलिए, 2025 में “holi danda” 12 फरवरी को गडेगा।
- इसी दिन से होली (Holi) की औपचारिक तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
क्या होते हैं भरभोलिए (Bharbholiye)?
भरभोलिए (Bharbholiye) गोबर से बने उपलों को कहा जाता है, जिनके बीच में छेद किया जाता है। इन उपलों को मूंज की रस्सी से पिरोकर माला बनाई जाती है, जिसमें सात भरभोलिए (Bharbholiye) होते हैं। यह माला होलिका दहन (Holika Dahan) के समय अग्नि को समर्पित की जाती है।
‘भरभोलिए’ (Bharbholiye) का महत्व:
‘भरभोलिए’ (Bharbholiye) यानी गाय के गोबर से बने उपले (कंडे) होलिका दहन (Holika Dahan) के अनुष्ठान में खास भूमिका निभाते हैं।
भरभोलिए की रस्म (Bharbholiye Ritual):
- होलिका दहन (Holika Dahan) से पहले बहनें भरभोलिए (Bharbholiye) की माला से अपने भाइयों की नजर उतारती हैं।
- इसे भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घुमा कर होलिका (Holika) की अग्नि में डाल दिया जाता है।
- ऐसा करने से परिवार पर बुरी नजर नहीं लगती और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
‘होली का डांडा’ (Holi Danda) और हमारी संस्कृति (Culture):
‘होली का डांडा’ (Holi Danda) सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामुदायिक एकता और हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलू:
- यह गांव और मोहल्ले के लोगों को एक साथ जोड़ता है।
- समाज में आपसी मेल-जोल और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
- पुरानी परंपराओं और मान्यताओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य करता है।
‘होली का डांडा’ (Holi Danda) हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है और समाज में आपसी प्रेम, एकता और श्रद्धा का संचार करता है। अगर आप भी इस परंपरा से जुड़े हैं, तो इस साल 12 फरवरी 2025 को ‘होली का डांडा’ (Holi Danda) जरूर रोपें और अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए रखें!
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