Kisan Andolan 2.0 Explainer: एमएसपी (MSP) समेत विभिन्न मांगों को लेकर बड़ी संख्या में किसान (Farmer Protest) इस समय आंदोलित है। देश की राजधानी से सटे शंभू बॉर्डर (Shambhu Border) पर पंजाब और हरियाणा के किसान डेरा डाले हुए हैं और दिल्ली कूच करना चाहते हैं। किसान अपनी पर है कि इस बार वह किसी भी हाल में नहीं झुकेंगे और भारत सरकार से अपनी मांगें मनवा कर रहेंगे। इस बार भी कुछ वैसा ही दृश्य नजर आ रहा है जैसा 2020-21 के किसान आंदोलन में आया था।
2020-21 के समय लगभग डेढ़ साल तक चले सरकार बनाम किसान यूनियन आंदोलन तीन कृषि कानून के विरोध में था। सरकार ने कानून को वापस लिया, जिसके साथ ही आंदोलन समाप्त हुआ। अब किसान आंदोलन 2 में ठीक उसी प्रकार किसान दिल्ली कूच करने के लिए बड़ी संख्या में ट्रैक्टर के साथ दिल्ली बॉर्डर पर जमा है। हिंसात्मक गतिविधियां रोकने के लिए सरकार द्वारा सुरक्षा के इंतजाम करते हुए सैनिक, अर्ध सैनिक बल तथा पुलिस को तैनात किया है। बैरिकेट्स लगाए गए हैं तथा धारा 144 लगाने के साथ इंटरनेट को भी बंद किया गया है।
इस आंदोलन का असर पंजाब, हरियाणा के साथ साथ राजस्थान के श्रीगंगानगर व अनूपगढ़ जिले पर भी पड़ा है, यहां पर भी इंटरनेट बंद करने जैसी घटना देखी गई है। पंजाब हरियाणा से आने वाले बड़ी संख्या में किसान अंबाला बॉर्डर तथा शंभू बॉर्डर पर डटे हैं। केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच शुक्रवार को चौथे दौर की वार्ता भी फेल हो गई।
क्या चाहते हैं किसान? क्या क्या हैं मांगें? (What are the demand of farmers?)
अखिल भारतीय किसान तथा मजदूर संगठन के अनुसार दिल्ली बॉर्डर पर जमा किसानों की कुल 12 मांगे हैं। जो निम्न प्रकार हैं-
- सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी से संबंधित कानून बनाए।
- किसानों को ऋण से मुक्त किया जाए।
- मनरेगा के अंतर्गत मजदूरी को ₹700 प्रतिदिन किया जाए।
- बिजली संशोधन विधेयक 2020 रद्द किया जाए।
- दिल्ली किसान आंदोलन के दौरान मारे जाने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा तथा केस को समाप्त किया जाए।
- स्वामीनाथन समिति की सिफारिश को लागू किया जाए।
- किसान व मजदूरों को पेंशन का प्रावधान किया जाए।
- लखीमपुर खीरी मामले में किसानों को न्याय मिले।
- भूमि अधिग्रहण कानून 2013 लागू किया जाए।
- कीटनाशक व उर्वरकों में सुधार किया जाए तथा इन्हें बनाने वाली कंपनियां पर नियम बनाया जाए।
- आदिवासियों के जमीन पर अधिकार का कंपनियों से संरक्षण किया जाए।
- मसाले के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए।
किसान आंदोलन 2.0 का लोकसभा चुनाव पर प्रभाव (Lok sabha election 2024)
भारतीय समाज में किसानों को अन्नदाता कहा जाता है। इसके साथ ही किसान व मजदूर संगठन भारतीय राजनीति के लिए दबाव समूह के रूप में कार्य करते हैं, जो सरकार द्वारा लिया गया फैसला अपने पक्ष में करने की क्षमता रखते हैं। चुनाव का समय है तथा इस प्रकार के आंदोलन भारतीय राजनीति में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने का कार्य करते हैं। जिसके सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव चुनाव में देखे जाने की आशंका बनी रहती है।
18वीं लोकसभा के लिए 543 सीटों पर चुनाव अप्रैल मई माह में होने वाले हैं। ऐसे में भारत के एक प्रमुख वर्ग किसान वर्ग का आंदोलन करना सरकार के लिए चुनौती पूर्ण है। पंजाब जैसे राज्य जहां लंबे समय से कुछ सामाजिक तत्वों द्वारा अलगाववादी गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है, जो देश की एकता अखंडता व सुरक्षा के लिए चिंताजनक है। इसका प्रभाव लोकसभा चुनाव पर देखने की आशंका है। दूसरी तरफ किसान व मजदूरों द्वारा किए जाने वाले सभी मांगों को पूरा किया जाना भी सरकार के लिए चुनौती पूर्ण है, क्योंकि सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाना अव्यावहारिक है। मांगे पूरी करने के लिए लगभग 10 लाख करोड रुपए की आवश्यकता है। जबकि बजट 2024-25 में इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पूंजीगत निवेश बजट आवंटन 11. 11 लाख करोड़ था। यह मांगें सरकार के बजट प्रबंधन को भी प्रभावित करेंगे। तथा इस प्रकार भारत के एक बड़े समूह का आंदोलन के लिए सड़क पर रहना लोकसभा चुनाव को प्रभावित करेगा।