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Manmohan Singh 1991 Reforms in India: ‘बर्बादी’ के कगार पर था भारत, देश ‘गिरवी’ रखने की आ गई थी नौबत, फिर मनमोहन सिंह ने यूं बचाया

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Manmohan Singh 1991 Reforms in India भारत को गिरवी रखने की आ गई थी नौबत, फिर मनमोहन सिंह ने देश को बर्बाद होने से यूं बचाया

FM Sikar
Written by: FM Sikar
4 Min Read

Manmohan Singh 1991 Reforms in India: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 (गुरुवार) को निधन हो गया। 92 वर्ष की आयु में नई दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। डॉ. मनमोहन सिंह को अर्थव्यवस्था का ज्ञाता माना जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने फैसलों से भारत को बर्बाद होने से बचा लिया था। ऐतिहासिक बदलाव लाने वाले मनमोहन सिंह ने भारत के लिए कई अहम योगदान दिए।

उनके निधन के बाद सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें बिहार पटना के प्रसिद्ध शिक्षक खान सर ने पूर्व प्रधानमंत्री के आर्थिक सुधारों पर बात रखी। खान सर ने खासकर 1991 में किए गए सुधारों का जिक्र किया है, जो भारत को आर्थिक संकट से उबारने में निर्णायक साबित हुए थे।

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जब भारत होने वाला था बर्बाद

मनमोहन सिंह ने अपनी करियर की शुरुआत में भारतीय रिजर्व बैंक में एक अर्थशास्त्री के रूप में की थी, लेकिन 1991 में जब भारत की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक हो गई थी, तब उन्हें पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। यह वही समय था जब भारत की क्रय शक्ति समता (PPP) बुरी तरह से गिर चुकी थी और विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 15 दिनों के आयात के लिए पर्याप्त था। ऐसे में देश के सामने एक बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया था और बर्बादी के कगार पर था।

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300 करोड़ रुपये लाकर बचा लिया देश

खान सर के वायरल वीडियो में वे बताते हैं कि यह समय था जब पीवी नरसिम्हा राव के पास कोई ठोस समाधान नहीं था। इस स्थिति में उन्होंने मनमोहन सिंह को पूरी जिम्मेदारी सौंप दी। मनमोहन सिंह ने तत्काल कदम उठाया और भारत का सोना इंग्लैंड में गिरवी रखकर 300 करोड़ रुपये जुटाए। इस कदम से न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिर किया, बल्कि आगे चलकर विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।

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मनमोहन सिंह के उस ऐतिहासिक फैसले ने भारत में एक नई आर्थिक क्रांति का श्रीगणेश किया। 1991 का बजट भारत के इतिहास में याद किया जाएगा, जिसमें उदारीकरण (Liberalization), निजीकरण (Privatization), और वैश्वीकरण (Globalization) की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। इसके परिणामस्वरूप, भारत में व्यापार नीति, औद्योगिक लाइसेंसिंग, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देने जैसे बड़े बदलाव हुए। ये सभी सुधार भारत की अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हुए।

मनमोहन सिंह ने केवल वित्त मंत्री के रूप में ही नहीं, बल्कि 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में भी देश की आर्थिक दिशा को नया आकार दिया। 2014 में, जब उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का पद सौंपा, तो उन्होंने यह टिप्पणी की थी कि जब उन्होंने राजनीति में कदम रखा था, तब भारत की अर्थव्यवस्था संकट में थी और विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम था। लेकिन जब वे प्रधानमंत्री पद छोड़ रहे थे, तो भारत दुनिया के सबसे बड़े अर्थव्यवस्थाओं में तीसरे स्थान पर था।

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मनमोहन सिंह के ये सुधार भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मोड़ थे। उनके निर्णयों ने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा, बल्कि उसे वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई।

उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा, और उनके द्वारा किए गए सुधारों ने भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर किया। मनमोहन सिंह का कार्यकाल भारतीय राजनीति और आर्थिक इतिहास में हमेशा एक प्रेरणा बना रहेगा।

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