Pahalgam Attack Manish Ranjan IB Officer Killed: जब कोई बेटा देश के लिए कुर्बान होता है, तो सिर्फ एक मां-बाप ही नहीं, पूरा देश रोता है। आंखों में आंसू, दिल में गर्व—ये दो भाव जब एक साथ उमड़ते हैं, तब समझ आता है कि देशभक्ति का मतलब क्या होता है। बिहार के अरुही गांव का मनीष रंजन भी ऐसा ही एक नाम बन गया है, जिसने अपनी मुस्कुराहट पीछे छोड़ दी और शहादत की मिसाल बन गया। एक परिवार, जो शिक्षा और सेवा में विश्वास करता था, आज उसी परिवार ने अपने सबसे होनहार बेटे को खो दिया। ये सिर्फ एक मौत नहीं, एक सपना था जो अधूरा रह गया।
जम्मू-कश्मीर की सुरम्य वादियों में जब आतंक की आग ने फिर से भड़कना शुरू किया, तब बिहार का एक लाल उस आग में हमेशा के लिए खो गया। पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में शहीद हुए मनीष रंजन, इंटेलीजेंस ब्यूरो में हैदराबाद में पदस्थापित सेक्शन ऑफिसर थे। उनका मूल निवास बिहार के रोहतास जिले के करगहर थाना क्षेत्र के अरुही गांव में है। इस हृदयविदारक घटना की खबर जब गांव पहुंची, तो पूरे क्षेत्र में मातम पसर गया। हर आंख नम है, हर चेहरा सवालों से भरा है।
मनीष रंजन तीन भाइयों में सबसे बड़े थे। उनके पिता डॉक्टर मंगलेश कुमार मिश्र पश्चिम बंगाल के झालदा स्थित एक इंटर कॉलेज में शिक्षक रहे और वहीं से सेवानिवृत्त हुए थे। दादा पारसनाथ मिश्र भी प्रधानाध्यापक के पद से सेवा निवृत्त होकर सासाराम में रहते थे। एक परिवार जिसने शिक्षा और सेवा को जीवन का आधार बनाया, आज उसी परिवार का एक जज्बा हमेशा के लिए खो गया।
मनीष रंजन की मौत के बाद उनके रिश्तेदारों की हालत बहुत ही गंभीर है। औरंगाबाद में रहने वाले उनके रिश्तेदार डॉ. सुरेंद्र मिश्र और ब्लड बैंक के कर्मी आशुतोष कुमार इस दुःख को सहन नहीं कर पा रहे हैं। डॉ. सुरेंद्र मिश्र बताते हैं कि मनीष से आखिरी बार तीन दिन पहले ही बात हुई थी, जब उसने उन्हें हैदराबाद आने का आमंत्रण दिया था।
मनीष के छोटे भाई राहुल रंजन भारतीय खाद्य निगम में कार्यरत हैं, जबकि दूसरे भाई विनीत रंजन पश्चिम बंगाल में एक्साइज डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं। मनीष रंजन पहले रांची में कार्यरत थे, लेकिन बाद में हैदराबाद स्थानांतरित हो गए थे। वह अपनी पत्नी आशा देवी और दो बच्चों के साथ कश्मीर घूमने आए थे, जब यह दुखद घटना घटी।
एक वीर का अंतिम सफर: एक परिवार, एक सपना
मनीष रंजन के परिवार के लिए यह कोई सामान्य दुःख नहीं है। एक शिक्षक पिता, एक सम्मानित अधिकारी और एक प्यारे बेटे के जाने से परिवार का हर सदस्य टूट चुका है। इस परिवार ने जीवनभर शिक्षा और सेवा का पाठ पढ़ाया, लेकिन आज वे केवल शोक और यादों में खो गए हैं।
उनकी शहादत, उनके योगदान और उनके परिवार के प्रति सम्मान हमेशा जीवित रहेगा, लेकिन उनके जाने से जो खालीपन आया है, वह शायद कभी भर न पाए।
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