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Dwijpariya Sankashti Vrat- द्विजपरीय संकष्टी व्रत के नियम और कथा

Monika Agarwal
Written by: Monika Agarwal - Freelance Writer
4 Min Read

Dwijpariya Sankashti Vrat-इस महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को द्विजपरीय संकष्टी का व्रत मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और सूर्योदय होने से लेकर चांद निकलने तक इस दिन व्रत किया जाता है। रात में इस दिन चंद्र देव की भी पूजा की जाती है। इस दिन को काफी शुभ दिन माना जाता है। इस दिन व्रत करने से और विधि पूर्वक भगवान गणेश की पूजा करने से आप को काफी लाभ मिल सकता है लेकिन इसके नियमों का आप को जरूर पता होना चाहिए ताकि आप पूजा के दौरान कोई गलती न कर सकें। आइए जानते हैं व्रत के नियम और कथा के बारे में।

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व्रत के नियम (Dwijpariya Sankashti Vrat Rules)

  • इस दिन आप को सुबह सुबह जल्दी उठ लेना चाहिए। ऐसा माना जाता है की इस दिन ब्रह्म मुहूर्त जोकि सूर्योदय से दो घंटे पहले होता है, में उठ जाना चाहिए और उठ कर नहा लेना चाहिए।
  • आप को अच्छे और साफ सुथरे कपड़े पहनने चाहिए।
  • इस दिन आप को ब्रह्मचर्य अपनाना चाहिए।
  • इस व्रत में आप को कुछ चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए। जैसे चावल, गेंहू, दाल और नॉन वेज फूड को खाने से बचें। हालांकि आप फल, दूध और व्रत में बनने वाली चीजों का सेवन कर सकते हैं।
  • आप भगवान गणेश का नाम भी जप सकते हैं। ॐ गणेशाय नमः मंत्र का जाप करना काफी शुभ और लाभदायक माना जाता है
  • इस दिन आप को तंबाखू और शराब का सेवन करने से सख्त बचना चाहिए।

कथा (Dwijpariya Sankashti Vrat Katha)

विष्णु शर्मा नाम के अच्छे व्यक्ति के सात पुत्र थे। बच्चे बड़े होने के बाद एक दूसरे के साथ रहने से मना करने लगे। विष्णु शर्मा वृद्ध होने लगे। उनकी 6 बहुओं ने उनके साथ काफी बुरा व्यवहार किया। एक दिन विष्णु ने संकष्टी व्रत करने का सोचा। वह अपनी सबसे बड़ी बहू के घर गया और उसे व्रत की तैयारियां करने को कहने लगा। बड़ी बहू ने न केवल तैयारियां करने से मना किया बल्कि गणेश भगवान का अपमान भी किया। सबसे छोटी को छोड़ कर सारी बहुओं ने विष्णु के साथ ऐसा ही किया। छोटी बहु ने दिल से सारी तैयारियां की। व्रत और पूजा करने के लिए पैसे भी इकठे किए और विष्णु का पूरे समय तक ख्याल भी रखा।
अगले दिन वह बहुत सारे कीमती गहने और जेवर देख कर हैरान हो गई। वह लोगों द्वारा चोरी का आरोप लगने से डरने लगी और घबरा गई लेकिन विष्णु को पता था की यह सब भगवान गणेश की कृपा है। इसके बाद दोनों ने भगवान गणेश का धन्यवाद किया। विष्णु ने अपना सारा धन और जायदाद छोटे बेटे को दे दिया और जब बाकियों ने इस बारे में प्रश्न किया तो बताया की इसे इसके कर्मों का ही फल मिल रहा है। इस पर छोटे वाला बेटा जो सबसे गरीब था, बहु के कर्मों की वजह से सबसे अमीर हो गया और बाकी 6 बहुओं का सिर शर्म से झुक गया।

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